
विवाह के कानूनी पंजीकरण या ’मैरिज सर्टिफिकेट’ की उपयोगिता के प्रति जागरूकता की कमी है। यही कारण है कि कोर्ट या तहसील में रजिस्ट्ार आॅफिस में दर्ज होने वाली शादियों की संख्या बेहद कम है। आमजनों को शादी के लीगल सर्टिफिकेट की कीमत का अंदाजा उस समय ही होता है,जब शादीशुदा संबंधों में किसी तरह की दरार पडने पर मामला कोर्ट तक पहंुचता है अथवा विदेश जाने के लिए शादीशुदा जोडों को इसकी जरूरत पडती है। कोर्ट में चल रहे मामले में पति से कानूनी हक पाने के लिए ज्यादातर महिलाओं को खुद को ब्याहता साबित करने में ही पसीने छूट जाते हैं। तमाम फर्जीवाडों और दलाली के चलते आर्य समाज मंदिरों से मिले शादी के प्रमाण और निकाहनामों को कोर्ट संदेह की द्ष्टि से देखता है। ऐसे में केंद्र सरकार की ओर से हर धर्म-जाति के लोगों के लिए कानूनी रूप से विवाह पंजीकरण अनिवार्य करने का फैसला काबिले तारीफ है। फैसले पर मुहर लगाने के लिए सरकार इसके लिए विधेयक लाने की तैयारी में है। विधेयक पास होकर लागू हुआ तो इससे गैर कानूनी शादियों और बाल-विवाह पर भी काफी हद तक लगाम लगने की उम्मीद है। कानूनी रूप से शादी के पंजीकरण के लिए पण्डितों और धर्म गुरुओं के योगदान की भी जरूरत है। यह अपने-अपने समुदाय को इसके लिए जागरूक व प्रेरित कर सकते हैं। फिक्र इस बात की है कि जब पंजीकरण सबके लिए ही अनिवार्य होगा तो पंजीकरण कराने वालों की संख्या द्रुत गति से बढेगी।
हमारे सरकारी सिस्टम की बदहाली और इसकी कार्य प्रणाली की कछुआ चाल से कौन वाकिफ नही है। सरकारी सुस्ती के कारण राशन कार्ड, निवास प्रमाण पत्र या पहचानपत्र बनवाने में जितना समय लगता है। बस समझ लीजिए शादी का लीगल सर्टिफिकेट मिलने में भी उतना ही समय लग सकता है। यह स्थिति तब है जब विवाह पंजीकरण कराने वालों की संख्या अकेले अपने शहर में ही हर साल 300 का भी आकंडा पार नहीं कर पाती। ’स्पेशल मैरिज एक्ट-1954 के तहत केवल धारा पांच का फार्म वर-वधू दोनो को अलग अलग भरकर मैरिज कोर्ट में जमा करना होता है,लेकिन केवल फार्म भरकर जमा करनेभर से पंजीकरण नहीं माना जाता। मजिस्ट्ेट की अनुमति के बाद ही सर्टिफिकेट जारी किया जाता है। औसतन इसमें एक माह से दो माह का समय तो लगता ही है। अब अगर सभी के लिए पंजीकरण अनिवार्य होगा तो पंजीकरण कराने वालों की संख्या सैकडों से लाखों में भी बदल सकती है। सर्टिफिकेट मिलने में महीने के बजाय साल का समय लगेगा। इस स्थिति से बचना है तो ई- गर्वनेस का सपना जो अभी तक कोर्ट-कचेहरियों में पूरी तरह लागू नहीं हो सका है, पूरा करना ही होगा। सरकार की ओर से आॅनलाइन मैरिज रजिस्ट्ेशन की शुरुआत भी करनी होगी। नहीं तो भला कौन सा नव-विवाहित जोडा चाहेगा कि वह नए जीवन की शुरुआत में ही पंजीकरण से लेकर सर्टिफिकेट हासिल करने के लिए कोर्ट-कचेहरी के चक्कर काटते रहे। नए कानूनों के साथ सरकारी सिस्टम का भी नवीनीकरण जरूरी है। नहीं तो नया विधेयक भी उन्हीं कानूनो की जमात में शामिल हो जाएगा जो पहले से लागू होने के बाद भी ठंडे बस्ते में पडे हैं। हम वहीं खडे रह जाएंगे जहां से चले थे और शादी का कानूनी पंजीकरण या ’कोर्ट मैरिज’ ’प्रेम विवाह’ के पर्यायवाची तक ही सीमित रह जाएगा।
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